नवजात शिशु (0 से 28 दिन तक का बच्चा) बेहद नाजुक और संवेदनशील होता है। माता-पिता के रूप में यह समय बहुत खास होता है, लेकिन साथ ही चुनौतियों भरा भी। शिशु की सही देखभाल से न केवल उसका शारीरिक विकास बेहतर होता है, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव भी मजबूत होता है।
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बच्चे को सुरक्षित तरीके से गोद में लें
नवजात की गर्दन और सिर बेहद नाजुक होते हैं। जब भी आप उसे उठाएं, उसके सिर और गर्दन को हमेशा सपोर्ट दें। कभी भी झटके से न उठाएं।
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साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें
शिशु की इम्युनिटी बहुत कमज़ोर होती है। उसे छूने से पहले हाथ धोना ज़रूरी है। घर आने वाले मेहमानों को भी यह बात समझाना ज़रूरी है।
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बच्चे की नींद का ध्यान रखें
नवजात आमतौर पर दिन में 16–18 घंटे सोता है, लेकिन छोटे-छोटे अंतरालों में। उसे पीठ के बल सुलाना सुरक्षित होता है, ताकि अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (SIDS) का खतरा कम हो।
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स्तनपान ही सर्वोत्तम पोषण है
शिशु के लिए पहले 6 महीने तक केवल माँ का दूध ही सर्वोत्तम होता है। इसमें सभी ज़रूरी पोषक तत्व और एंटीबॉडीज़ होते हैं जो उसे बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं।
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नहलाने का सही तरीका
पहले कुछ दिनों तक स्पंज बाथ ही दें जब तक कि गर्भनाल (Umbilical cord stump) गिर न जाए। साफ और गुनगुने पानी का ही उपयोग करें। शिशु को हर दिन नहलाना ज़रूरी नहीं है
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कपड़े कैसे चुनें
नरम, कॉटन के कपड़े पहनाएं। ज़्यादा ढीले या बहुत टाइट कपड़े न पहनाएं। मौसम के अनुसार कपड़ों की परतें बढ़ाएं या घटाएं।
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डाइपर बदलने में सावधानी
डायपर को समय-समय पर बदलते रहें। ज्यादा देर गीला डायपर रहने से रैशेज़ हो सकते हैं। डाइपर बदलने के बाद शिशु की त्वचा को अच्छी तरह साफ और सूखा रखें।
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नियमित टीकाकरण ज़रूरी है
नवजात को समय पर टीके लगवाना बेहद ज़रूरी है। BCG, OPV और हेपेटाइटिस-B जैसे पहले टीके जन्म के तुरंत बाद दिए जाते हैं। डॉक्टर से शिशु का टीकाकरण चार्ट ज़रूर बनवाएं।
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बुखार या असामान्य लक्षणों को हल्के में न लें
अगर शिशु को बुखार हो, दूध पीने में दिक्कत हो या वह लगातार रो रहा हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। नवजात में छोटी समस्याएं भी गंभीर हो सकती हैं।
क्रमांक | ज़रूरी बात | विवरण |
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सिर और गर्दन को सहारा देना | नवजात का सिर और गर्दन बहुत नाजुक होता है, गोद में लेते समय हमेशा सहारा देना चाहिए। |
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साफ-सफाई का ध्यान | बच्चे को छूने से पहले हाथ धोएं। नवजात की इम्युनिटी कम होती है, इसलिए संक्रमण से बचाना ज़रूरी है। |
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नींद की स्थिति और आदतें | शिशु को पीठ के बल सुलाएं। वह दिन में 16–18 घंटे सोता है, लेकिन छोटे-छोटे अंतराल में। |
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स्तनपान करवाना | पहले 6 महीने तक केवल माँ का दूध ही देना चाहिए। यह पूर्ण पोषण और रोग प्रतिरोधक क्षमता देता है। |
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साफ-सुथरे तरीके से नहलाना | जब तक गर्भनाल न गिरे, तब तक स्पंज बाथ दें। गुनगुने पानी का ही इस्तेमाल करें। |
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आरामदायक कपड़े पहनाना | सूती, मुलायम और मौसम के अनुसार कपड़े पहनाएं। टाइट और सिंथेटिक कपड़े न पहनाएं। |
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डायपर बदलना और त्वचा की देखभाल | हर 2–3 घंटे में डायपर बदलें। रैश से बचाने के लिए त्वचा को साफ और सूखा रखें। |
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समय पर टीकाकरण | जन्म के तुरंत बाद BCG, OPV और हेपेटाइटिस-B के टीके ज़रूरी हैं। डॉक्टर से टीकाकरण चार्ट बनवाएं। |
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बुखार या लक्षणों को हल्के में न लें | दूध न पीना, लगातार रोना, बुखार या सुस्ती जैसी स्थिति में तुरंत डॉक्टर से मिलें। |
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प्यार, स्पर्श और संवाद देना | बच्चे से बात करें, स्पर्श करें, आँखों से संपर्क बनाए रखें — यह मानसिक विकास के लिए ज़रूरी है। |
निष्कर्ष
नवजात शिशु की देखभाल एक जिम्मेदारी भरा लेकिन बेहद खूबसूरत अनुभव है। धैर्य, प्यार और थोड़ी जानकारी के साथ आप अपने बच्चे को एक स्वस्थ और सुरक्षित शुरुआत दे सकते हैं।
अगर आपको किसी प्रकार की परेशानी या संदेह हो, तो बिना देर किए अपने बाल रोग विशेषज्ञ (Pediatrician) से सलाह लें।
“माँ और बेटे का रिश्ता कहने को सादा है,
पर इसकी गहराई समुंदर से ज्यादा है।”